आपामरजनसाधारण इस असार रुपी संसार में खिन्न होकर अपने कल्याण की इच्छा से जहां-तहां भटकता रहता है । बहुत प्रकार के उपाय भी करता रहता है,फिर भी आत्यन्तिक दुख का नाश और आनन्द की प्राप्ति नही होता देख कर ऋषियों के मार्ग दर्शन से ज्ञात होता है कि दुखों से छुटकारा पाने का एकमात्र साधन वेद ही है। वेद भी विशालकाय एक लाख मन्त्रवाला होने के कारण और कलिकाल से ग्रसित अल्प बुद्धि वाला मानव सम्पूर्ण वेदार्थ को ग्रहण करने में असमर्थ है इसी को ध्यान में रखते हुए मन्त्र द्रष्टा ऋषियों ने काण्डत्रयात्मक वेद में से भी कर्मकाण्ड और उपासना कांड की उपेक्षा कर केवल ज्ञान काण्डात्मक दर्शनों में मूर्धन्य वेदान्त दर्शन को ही विस्तार से प्रतिष्ठापित किया है वेदांतदर्शनों में भी श्रुति स्मृति युक्ति सिद्ध विशिष्टाद्वैतवेदान्त दर्शन का विशेष रूप से प्रचार प्रसार के लिए श्रीरंग लक्ष्मी आदर्श संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना श्रीधाम वृन्दावनस्थ श्रीरङ्गमन्दिर के द्वारा किया गया है। इस महाविद्यालय को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से वेदान्त विषय की मान्यता प्राप्त है। वेदान्त अर्थात् ब्रह्मसूत्र उपनिषद एवं श्रीमद्भगवद्गीता इन तीनों को प्रस्थानत्रयी कहा जाता है। इस प्रस्थानत्रयी के ऊपर प्रायः आठ आचार्यों ने स्व स्वानुभवानुसार भाष्य किये हैं। भाष्य आठ होने के कारण वेदान्त भी आठ नाम से प्रसिद्ध है। जैसे शंकरवेदान्त, रामानुजवेदान्त, माध्ववेदान्त, निम्बार्कवेदान्त, गौड़ियवेदान्त, रामानन्दवेदान्त, शक्तिविशिष्टाद्वैतवेदान्त के भेद से विख्यात है। उपरोक्त सभी वेदान्तों का यथा समय निर्विघ्न निरन्तर सत्कार पूर्वक अध्ययन अध्यापन होता रहता है। विद्यार्थी अथवा जिज्ञासु अपने अपने मतानुसार इनमे से किसी एक वेदान्त को स्वीकार करके अध्ययन, श्रवण, मनन और निदिध्यासन करते रहते हैं। महाविद्यालय स्थापना का प्रयोजन भी यही है।
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